भाई-बहन के स्नेह और समर्पण का पर्व: मिथिला का सामा-चकेवा

भाई-बहन के स्नेह और समर्पण का पर्व: मिथिला का सामा-चकेवा

दीपक कुमार तिवारी। मुजफ्फरपुर/समस्तीपुर/दरभंगा।

मिथिला की धरती पर भाई-बहन के प्रेम और समर्पण का प्रतीक सामा-चकेवा पर्व कार्तिक शुक्ल सप्तमी से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा तक पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। शाम ढलते ही गाँवों और मोहल्लों में सामा के गीतों की गूंज सुनाई देती है, जो भाई-बहन के अटूट प्रेम को दर्शाते हैं। यह पर्व श्रीकृष्ण की बेटी सामा और उनके भाई साम्ब की पौराणिक कथा पर आधारित है। कथा के अनुसार, भाई साम्ब की तपस्या से खुश होकर श्रीकृष्ण ने सामा को पक्षी रूप से मुक्त किया, और तभी से इस पर्व को मनाने की परंपरा चली आ रही है।

सामा-चकेवा के इस महोत्सव में मिट्टी की मूर्तियों के माध्यम से सामा, चकेवा और वृंदावन के प्रतीकों को जीवंत किया जाता है। महिलाएं और लड़कियाँ सामा-चकेवा के गीत गाते हुए भाई की लंबी उम्र की कामना करती हैं। हर शाम बांस की टोकरी में सामा-चकेवा की मूर्तियों को सजाकर मोहल्ले में एकत्रित होकर पारंपरिक खेल और गीतों का आयोजन किया जाता है।

पर्व का समापन कार्तिक पूर्णिमा की रात को सामा की विदाई से होता है। इस विदाई के दौरान, मूर्तियों को खेतों या नदियों में पूरे विधि-विधान के साथ विसर्जित किया जाता है, और विदाई का यह मार्मिक क्षण उस भावना को दर्शाता है, जैसे घर की बेटी की विदाई। महिलाएं सामा को विदाई देते हुए अगले वर्ष फिर से लौटने की कामना करती हैं।

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