बिहार के औरंगाबाद में तीन शिक्षकों की अवैध नियुक्ति पर कार्रवाई
*बिहार के औरंगाबाद में तीन शिक्षकों की अवैध नियुक्ति पर कार्रवाई*
*औरंगाबाद, बिहार* – बिहार के औरंगाबाद जिले के हसपुरा प्रखंड स्थित देवचंद सिंह उच्च विद्यालय, डिंडिर में अवैध नियुक्ति के मामले में तीन शिक्षकों की सेवा समाप्त कर दी गई है। अपीलीय प्राधिकार द्वारा लिए गए इस फैसले ने शिक्षा विभाग में हड़कंप मचा दिया है। ये शिक्षकों की नियुक्तियां नियमों के खिलाफ होने की पुष्टि होने के बाद ही की गई यह कार्रवाई न केवल नियमों का पालन सुनिश्चित करने के लिए अहम है, बल्कि शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता बनाए रखने की दिशा में भी एक सख्त कदम है।
*अवैध नियुक्ति का आरोप*
घटना का केंद्र देवचंद सिंह उच्च विद्यालय है, जहाँ तीन शिक्षकों की नियुक्ति पर सवाल उठाए गए थे। विद्यालय के तत्कालीन प्रधानाध्यापक महेश प्रसाद सिन्हा पर आरोप है कि उन्होंने नियुक्ति प्रक्रिया में घोर अनियमितताएं कीं और अपने तीन रिश्तेदारों को शिक्षक पद पर नियुक्त करवा दिया। इन तीनों में दो महिला शिक्षिका अनुपमा कुमारी और ममता कुमारी, और एक पुरुष शिक्षक रूपेश कुमार शामिल हैं। विद्यालय के एक अन्य शिक्षक अजय शर्मा ने सबसे पहले इस गड़बड़ी की जानकारी विभाग को दी थी।
अजय शर्मा ने आरोप लगाया कि इन तीनों की नियुक्ति में बिहार सरकार के शिक्षक नियुक्ति नियमावली 2017 का उल्लंघन हुआ है। इस नियमावली के तहत माध्यमिक विद्यालय में शिक्षक बनने के लिए उम्मीदवारों के पास बीएड की डिग्री और शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) उत्तीर्ण होना अनिवार्य है। इन तीनों शिक्षकों में से किसी के पास यह आवश्यक योग्यताएं नहीं थीं, फिर भी प्रधानाध्यापक ने नियमों को ताक पर रखकर उन्हें नियुक्त कर दिया।
*अपीलीय प्राधिकार की जांच और निर्णय*
शिक्षक अजय शर्मा की शिकायत के आधार पर अपीलीय प्राधिकार ने मामले की जांच शुरू की। जांच के दौरान यह पाया गया कि तीनों शिक्षकों की नियुक्ति नियमों के विरुद्ध की गई थी। अजय शर्मा के द्वारा लगाए गए आरोप सत्य पाए गए, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि तत्कालीन प्रधानाध्यापक ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए रिश्तेदारों को अवैध रूप से नियुक्त किया था। इसके बाद प्राधिकार ने तीनों शिक्षकों की नियुक्ति को अवैध करार देते हुए सेवा समाप्त करने का आदेश जारी किया। इस आदेश के बाद अब अनुपमा कुमारी, ममता कुमारी और रूपेश कुमार को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी है।
*स्थानीय लोगों और शिक्षकों में आक्रोश*
इस निर्णय के बाद स्थानीय लोगों और अन्य शिक्षकों में भी काफी आक्रोश है। ग्रामीणों का कहना है कि योग्य उम्मीदवारों के साथ अन्याय हुआ है और शिक्षण कार्य में अवैध नियुक्तियों का बढ़ता चलन शिक्षा की गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। कई लोगों ने मांग की है कि तत्कालीन प्रधानाध्यापक महेश प्रसाद सिन्हा पर भी कड़ी कार्रवाई की जाए। उनके खिलाफ भी विभागीय जांच की मांग उठ रही है ताकि ऐसे भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म किया जा सके।
*नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता*
यह मामला बिहार में शिक्षण पदों पर नियुक्तियों में पारदर्शिता और योग्यता के महत्व को रेखांकित करता है। शिक्षा विभाग की ओर से यह कदम एक संदेश है कि किसी भी प्रकार की गड़बड़ी को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। विभागीय अधिकारियों का मानना है कि नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार और उसकी निगरानी के लिए कड़े नियम बनाए जाने चाहिए। इस तरह के कदम से योग्य उम्मीदवारों को नौकरी का अवसर मिल सकेगा और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा।
*बिहार शिक्षा विभाग का नजरिया*
बिहार के शिक्षा विभाग ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया है और यह संकेत दिए हैं कि अन्य विद्यालयों में भी अनियमितताओं पर निगरानी बढ़ाई जाएगी। विभाग का कहना है कि शिक्षक की भूमिका केवल शिक्षा देना ही नहीं, बल्कि विद्यार्थियों के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करना भी है। यदि नियुक्तियों में ही अनियमितता होगी, तो विद्यार्थियों के समक्ष किस तरह की मिसाल पेश होगी, यह विभाग के लिए एक चिंतनीय मुद्दा है।
*आगे की कार्रवाई और संभावित प्रभाव*
इस मामले में कार्रवाई से उम्मीद की जा रही है कि अन्य सरकारी और गैर-सरकारी विद्यालयों में भी नियुक्ति प्रक्रिया पर ध्यान दिया जाएगा। इस प्रकार के निर्णय से शिक्षा व्यवस्था में सुधार की संभावना है, जिससे योग्य उम्मीदवारों को निष्पक्ष अवसर मिल सकेगा। स्थानीय निवासियों को भी उम्मीद है कि इस तरह की सख्त कार्रवाइयों से शिक्षा के क्षेत्र में अनियमितताओं पर लगाम लगेगी, और शिक्षा की गुणवत्ता में भी सुधार आएगा।
इस तरह, यह मामला सिर्फ एक विद्यालय की घटना नहीं है, बल्कि राज्य की शिक्षा व्यवस्था में सुधार और पारदर्शिता की ओर एक अहम कदम है।